
शिलांग, 27 अप्रैल: कोलकाता स्थित ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ZSI) के शोधकर्ताओं ने हाल ही में पूर्वोत्तर भारत में चार महत्वपूर्ण मकड़ी प्रजातियों का दस्तावेज़ीकरण किया है। इस उल्लेखनीय खोज में दो ऐसी प्रजातियों का विवरण शामिल है, जो विज्ञान के लिए अब तक अज्ञात थीं, जबकि दो अन्य प्रजातियों को पहली बार भारत में दर्ज किया गया है।
नई खोजी गई प्रजातियाँ Psechrus chizami और Psechrus nathanael ‘Psechridae’ परिवार से संबंधित हैं, जो छोटे गड्ढों, चट्टानों की दरारों और पेड़ों की जड़ों के बीच अपने विशिष्ट गुंबदाकार जाले और सुरंग जैसे आश्रय बनाती हैं। Psechrus chizami की खोज नागालैंड के चिज़ामी क्षेत्र में हुई, और इसका नाम भी उसी स्थान के नाम पर रखा गया। वहीं Psechrus nathanael, नागालैंड और मेघालय दोनों में दर्ज की गई, और इसका नाम नथानएल पी.ए. न्यूमई के सम्मान में रखा गया, जिन्होंने फील्ड अनुसंधान में अमूल्य योगदान दिया।
इन खोजों के साथ, भारत में अब तक खोजी गई Psechrus प्रजातियों की संख्या बढ़कर सात हो गई है।
शोधकर्ताओं की टीम — डॉ. सौविक सेन, डॉ. सुधिन पी.पी. और शोविक माली — ने मेघालय में दो अन्य मकड़ियों की उपस्थिति भी दर्ज की: वुल्फ स्पाइडर Pardosa tuberosa और जंपिंग स्पाइडर Thiania abdominalis। ये प्रजातियाँ विश्व स्तर पर पहले से ज्ञात थीं, लेकिन भारत में इनकी पहली आधिकारिक उपस्थिति इसी सर्वेक्षण में दर्ज की गई है।
विशेष रूप से Pardosa tuberosa एक संवेदनशील बायो-इंडिकेटर प्रजाति मानी जाती है। इसके घटते या बढ़ते संख्या से पर्यावरणीय स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता का आकलन किया जा सकता है। इसका अपेक्षाकृत अप्रभावित प्राकृतिक आवास में पाया जाना क्षेत्र की पारिस्थितिकीय गुणवत्ता को दर्शाता है।
वहीं Thiania abdominalis, एक मध्यम आकार की जंपिंग स्पाइडर है, जिसके सिर और वक्ष (सेफालोथोरैक्स) का रंग हल्का लाल-भूरा और पेट (एब्डॉमन) क्रीम-पीला होता है, जिस पर गहरे काले रंग की धारियाँ बनी होती हैं। ये प्रजाति बिना जाल बनाए शिकार करती है और अपनी फुर्ती तथा तेज़ दृष्टि के ज़रिए कीट नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
अध्ययन के प्रधान अन्वेषक डॉ. सौविक सेन ने कहा, “यह खोज बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे दो नई प्रजातियाँ और दो राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार दर्ज की गई प्रजातियाँ सामने आई हैं। साथ ही, यह पूर्वोत्तर भारत की अब तक अज्ञात पारिस्थितिकी विविधता की ओर भी संकेत करती है। इन क्षेत्रों में और भी गहन शोध किए जाने पर कई नई प्रजातियाँ दस्तावेज़ीकरण की प्रतीक्षा करती मिल सकती हैं।”
ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की निदेशक डॉ. धृति बनर्जी ने कहा, “यह तो केवल एक प्रारंभिक कदम है। आने वाले समय में पूर्वोत्तर भारत के दुर्गम और वनाच्छादित पहाड़ी इलाकों में और व्यापक सर्वेक्षण किए जाएंगे। इस क्षेत्र की जैव विविधता अद्वितीय है और इसका बड़ा हिस्सा अभी भी अनदेखा है। निरंतर शोध के माध्यम से हम इन पहाड़ियों में छिपे वन्य जीव-जंतुओं के रहस्यों से पर्दा उठाने की दिशा में अग्रसर हैं।”
यह खोज पूर्वोत्तर भारत में संगठित और वैज्ञानिक जीव विविधता सर्वेक्षणों के महत्व को और भी रेखांकित करती है, जिसे वैश्विक स्तर पर इसकी पारिस्थितिक समृद्धि और संरक्षण मूल्य के लिए मान्यता प्राप्त है।