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ब्लैक होल बम’ क्या है जो वैज्ञानिकों ने लैब में बनाया, पूरी दुनिया में खलबली

साइंस की दुनिया में एक ऐसा प्रयोग हुआ है, जिसे सुनते ही एक शब्द जेहन में आता है- खलबली. यूनाइटेड किंगडम के यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन के वैज्ञानिकों ने पहली बार ‘ब्लैक होल बम’ को लैब में ज़िंदा कर दिखाया है. नाम सुनते ही डर लगता है. क्या सचमुच ब्लैक होल अब फटने वाले हैं? क्या ये कोई हथियार है? या फिर कोई नया खतरा? नहीं, आपको घबराने की जरूरत नहीं है. वैज्ञानिकों की ये खोज ब्रह्मांड की सबसे रहस्यमयी ताकतों में से एक यानी ब्लैक होल को समझने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम जरूर है.

क्या है ‘ब्लैक होल बम’?

‘ब्लैक होल बम’ कोई असली बम नहीं है, बल्कि एक थ्योरी है जो 1970 के दशक में सामने आई थी. मशहूर वैज्ञानिक रोजर पेनरोज और याकोव जेल्दोविच ने आइडिया दिया था कि ब्लैक होल सिर्फ निगलता नहीं है, बल्कि उसकी स्पिन से ऊर्जा को बढ़ाया भी जा सकता है. अगर यह प्रक्रिया सही से दोहराई जाए तो एक पॉजिटिव फीडबैक लूप के जरिए इतनी ऊर्जा पैदा हो सकती है कि सिस्टम खुद फट पड़े, जैसे बम हो! इसे ही ‘ब्लैक होल बम’ कहा गया.

पहली बार लैब में साबित की गई थ्‍योरी

इस थ्योरी पर अब तक सिर्फ पेपर्स और समीकरण ही थे. लेकिन अब मैरियन क्रॉम्ब के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने इसे पहली बार प्रयोगशाला में साबित कर दिया है. उन्होंने एक घूमने वाला एल्युमीनियम सिलेंडर लिया और उसे ऐसे चुंबकीय क्षेत्रों में रखा जो उसके चारों ओर घूम रहे थे. इस सेटअप में खास बात ये थी कि बाहरी चुंबकीय क्षेत्र सिलेंडर से तेज घूम रहा था या धीमा, इसके आधार पर ऊर्जा का व्यवहार बदल गया.

जब सिलेंडर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में लेकिन उससे तेज गति से घूमता है, तो चुंबकीय क्षेत्र की ताकत बढ़ जाती है यानी ऊर्जा एम्प्लिफाई होती है. लेकिन अगर सिलेंडर धीमा घूमता है, तो ऊर्जा घट जाती है. यही है उस ब्लैक होल थ्योरी का रियल वर्जन, जिसे दशकों से सिर्फ किताबों में पढ़ा गया था. क्रॉम्ब और उनकी टीम की स्टडी (प्री-प्रिंट) arXiv पर अपलोड की गई है.

एक्सपेरिमेंट में जेल्दोविच एम्प्लिफिकेशन की स्थिति को दिखाता डायग्राम (Cromb et al., arXiv, 2025)

अब सवाल ये कि इसका मतलब क्या है? क्या इससे ब्लैक होल की असली ताकत को समझा जा सकता है?

जवाब है हां. चूंकि हम किसी असली ब्लैक होल के करीब जाकर टेस्ट नहीं कर सकते, इसलिए ऐसे प्रयोग हमारे लिए एनालॉग्स हैं. यानी हम जिन बातों को थ्योरी में जानते हैं, उन्हें प्रयोगशाला में किसी और मीडियम से दोहरा कर समझ सकते हैं. इस केस में चुंबकीय क्षेत्र और घूमता सिलेंडर, ब्लैक होल और उसकी ऊर्जा का एनालॉग है.

इससे हम ये समझ सकते हैं कि जब कोई कण ब्लैक होल के इवेंट होराइजन के बाहर, उसके एर्गो-स्फीयर में प्रवेश करता है तो उसके साथ क्या होता है. ब्लैक होल का स्पिन स्पेस-टाइम को खींचता है, जिसे फ्रेम ड्रैगिंग कहते हैं. और अगर कोई कण उसी दिशा में चलता है, तो वह अतिरिक्त ऊर्जा के साथ बाहर निकल सकता है. ठीक उसी तरह जैसे एयरपोर्ट की मूविंग वॉक पर चलते वक्त आप और तेज हो जाते हैं.

Deepak Verma

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