पूर्व डीजीपी डब्ल्यू.आर. मारबनियांग के आवास पर घरेलू सहायिका की हत्या मामले में मेघालय हाईकोर्ट ने ट्रायल तेज़ करने के दिए निर्देश
अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष गवाहों की सूची की समीक्षा करे और यदि संभव हो, तो अप्रासंगिक या अनावश्यक गवाहों को हटाया जाए

शिलॉन्ग, 6 अगस्त: मेघालय हाईकोर्ट ने वर्ष 2007 में पूर्व पुलिस महानिदेशक (DGP) डब्ल्यू.आर. मारबनियांग के आवास पर घरेलू सहायिका की हत्या से जुड़े मामले की सुनवाई तेज़ करने के निर्देश निचली अदालत को दिए हैं।
इस मामले में पूर्व डीजीपी मारबनियांग की ओर से अधिवक्ता नितिन खेरा ने पैरवी की, जबकि सीबीआई की ओर से भारत सरकार के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एन. मोजिका ने अधिवक्ता आर. फैंकॉन की सहायता से पक्ष रखा।
यह घटना 7 मार्च, 2007 की है। इस मामले में सीबीआई ने कांस्टेबल अर्विल संगमा पर घरेलू सहायिका की हत्या का आरोप लगाते हुए आरोपपत्र दाखिल किया था, जबकि मारबनियांग पर साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया था।
मामले की सुनवाई बुधवार को न्यायमूर्ति डब्ल्यू. डिएंगडोह की एकल पीठ ने की। अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ता (मारबनियांग) के खिलाफ मामला सेशंस केस नंबर 76 (टी)/2013 के तहत अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, शिलॉन्ग की अदालत में लंबित है।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि यह मामला करीब 12 वर्षों से अधिक समय से लंबित है, जिससे याचिकाकर्ता को, जिनकी उम्र लगभग 75 वर्ष है, मानसिक पीड़ा हो रही है। उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता नियमित रूप से अदालत में पेश हो रहे हैं, फिर भी यह स्पष्ट नहीं है कि यह मुकदमा कब समाप्त होगा।
अब तक 102 गवाहों में से केवल 58 गवाहों की गवाही हो पाई है। वकील ने यह भी कहा कि यदि केस सामान्य प्रक्रिया के अनुसार सप्ताह में एक बार ही चले, तो इसे पूरा होने में करीब 75 हफ्ते और लग सकते हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से मुकदमा रद्द करने की मांग नहीं की गई, बल्कि अदालत से अनुरोध किया गया कि वह निचली अदालत को आवश्यक निर्देश दे कि वह मुकदमे की कार्यवाही शीघ्रता से पूरी करे, जिससे अनावश्यक देरी से याचिकाकर्ता को राहत मिल सके।
सीबीआई की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमा खत्म करना उचित नहीं होगा, क्योंकि इसमें एक अन्य सह-आरोपी भी है, जो आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या के आरोप में मुकदमा झेल रहा है।
सभी तथ्यों और याचिकाकर्ता की उम्र को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि निचली अदालत मुकदमे की सुनवाई में तेजी लाए, और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 309 के प्रावधानों के तहत, यदि संभव हो तो मामले की दैनिक आधार पर सुनवाई की जाए।
अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष गवाहों की सूची की समीक्षा करे और यदि संभव हो, तो अप्रासंगिक या अनावश्यक गवाहों को हटाया जाए, ताकि कार्यवाही में और अधिक देरी न हो।
				
					
					


